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Agriculture Business Ideas Hindi
वर्तमान समय में बढ़ती हुई महंगाई और कोरोना की मार में सिर्फ एक नौकरी पर घर परिवार के खर्चों का वहन करना असंभव है। अब अधिकतर लोग अपनी नौकरी से तंग आकर बिजनेस करना पसंद करते हैं।
लेकिन यहां सिर्फ बिजनेस शुरू करना ही समस्या का समाधान नहीं है किंतु सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि हम में से हर कोई एक ऐसा बिजनेस करना चाहता हैं, जिसमें हमें कभी भी घाटा ना हो।
तो आज इस लेख में हम आपको एक ऐसा फ्यूचर बिज़नेस आइडियाज बता रहे है, जिस की डिमांड बाजार में हर समय बनी रहती है, यह कहना गलत नहीं होगा की इस प्रोडक्ट की उत्पादन से ज्यादा मांग है। अगर मुनाफा की बात करें तो इस में करीब 70 -80 % तक का मुनाफा होता है |
यह एक ऐसा उत्पाद है, जिसे, सर्दी, गर्मी या बारिश हर मौसम में खाया जाता है। देश के हर तबके और हर उम्र के लोग इसे बड़े चाव से खाते है, यह है मखाना की खेती।
मखाने की अत्याधिक मांग का कारण है मखाना स्वस्थ्य में बहुत लाभदायक होता है, सूखा मेवा है, जो की बहुत सरे अनेको उत्पाद जैसे की नमकीन, मिठाइयाँ, उपहार, आहार, और ना जाने कहा कहा इस का उपयोग होता यह बताना थोड़ा मुश्किल है। विदेशों में भी मखाने की भरी मांग रहती है और दाम भी अच्छे मिलते हैं
अब आप के मन में इस तरह के सवाल जरूर आ रहे होंगे जैसे कि, भारत देश में मखाना की खेती कहां होती है, मखाना की खेती कैसे होती है, क्या हम इस को शहर में कर सकते हैं, सही तरीके से मखाना की खेती कैसे की जाती है, उत्तर प्रदेश में मखाना की खेती कैसे करें |
अगर आप बिहार राज्य से हैं तो मखाना की खेती बिहार में कैसे करें, क्या सरकार कोई मदद करती है, व्यापारिक तरीके से मखाना की खेती कैसे करते हैं, और करने के बाद पैकिंग, मार्केटिंग, सही दाम में मखाने को कैसे बेचे , और भारत में मखाना की खेती कहाँ होती है। ये सारी जानकारी विस्तार पूर्वक आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आप को देंगे।
आइये जानते हैं मखाना के फायदे (Fox Nut Benefits)
- तनाव में कमी
- जोड़ो के दर्द में राहत
- पाचन में सुधार
- किडनी को मजबूत बनता है
- किडनी हेल्दी बनी रहती है.
- खाली पेट मखाने खाने से खून में शुगर का लेवल कंट्रोल में रहता है.
- डायबिटीज पेशेंट्स के लिए मखाना एक जरुरी मेवा है.
भारत में मखाना की खेती करने वाले राज्य
हमारे देश में तक़रीबन 15 हजार हेक्टेयर के खेत में मखाने की खेती की जाती है। हमारे देश में मखाना की खेती बिहार सबसे अव्वल दर्जे पर है। राज्य के कई जिलों में मखाने की खेती होती है। राज्य में ही करीब 80 से 90 प्रतिशत मखाने का उत्पादन किया जाता है, तथा उत्पादन का 70 फीसदी हिस्सा मिथिलांचल का है।
बिहार राज्य में करीब 1 लाख 20 हज़ार टन मखाने के बीज का उत्पादन होता है, जिसमे से मखाने के लावे की मात्रा 40 हजार टन होती है। मखाने का बोटैनिकल नाम यूरेल फेरोक्स सलीब है, जिसे साधारण भाषा में कमल का बीज कहा जाता है।
मखाने (Fox Nut) की खेती गर्म और शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। बिहार सरकार ने भी किसानों की आमदनी बढ़ाने के हेतु मखाना विकास योजना का आरंभ किया है। इस योजना के अंतर्गत राज्य के किसानों को 72,750 रुपये की सब्सिडी दी जाती है।
बिहार के करीब आठ जिलों में सबसे अधिक मखाना की फसल होती है। इसमें दरभंगा,कटिहार, पूर्णिया,सुपौलस किशनगंज, सहरसा, पश्चिम चंपारण और अररिया जिले के किसानों को सब्सिडी मुहैया कराई जा रही है। प्रदेश के ये सभी जिले मिथिलांचल क्षेत्र में आते हैं।
मखाने में पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा में होते जो हमारे शरीर के लिए बेहद ही लाभकारी होते है। मखाने का खाने में कई तरह से इस्तेमाल किया जाता है जैसे की दूध में भिगोकर खाने के अलावा खीर, मिठाई और नमकीन बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
इसके पौधों पर कांटेदार पत्ते पाए जाते है और पत्तो पर ही बीज का विकास होता है। जो विकास के बाद तालाब की सतह में चले जाते है।
मखाने की खेती के लिए आवश्यक वातावरण
मखाने की खेती के लिए जलभराव वाली भूमि का चयन करना चाहिए। यह खेती ज्यादातर जलभराव वाली काली चिकनी मिट्टी में ही की जाती है, क्योकि पौधों का विकास पानी के अंदर ही होता है।
मखाने की खेती तालाब में करने से पानी अधिक समय तक वहा एकत्रित रहता है। मखाने का पौधा उष्णकटिबंधीय वाला होता है, साथ ही सामान्य तापमान पर भी इसके पौधे योग्य विकास कर पाते है।
मखाने की खेती का ऑर्गेनिक तरीका
मखाने (Fox Nut) की खेती के लिए हम ऑर्गेनिक तरीके भी अपना सकते है। इस प्रकिया में खेती के लिए कृत्रिम तालाब बनाया जाता है, जिसमे सबसे पहले मिट्टी की खुदाई कर उसमे पानी भर दिया जाता है। फिर उस तालाब में मिट्टी और पानी को मिलाकर कीचड़ तैयार कर मखाने के बीजो को लगाया जाता है।
अंत में तालाब में करीब 6 से 9 इंच तक पानी की भराई की जाती है। इस कृत्रिम तालाब को बीज रोपाई से चार माह पहेले तैयार करना पडता है।
मखाने के बीज लगाने का योग्य समय और तरीका
बीजो की रोपाई हमेशा तालाब की निचली सतह पर ही करनी चहिए । याद रहे की बीज की रोपाई से पहेले तालाब में मौजूद खरपतवार को निकालकर देना जरुरी है । इसका सबसे बडा फायदा यह होगा की पौधों को किसी तरह के रोग लगने की संभावना कम हो जाती है।
सफाई के बाद तालाब में मखाने के बीजो को 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई में निचली सतह मिट्टी में लगाया जाता है। एक हेक्टेयर के खेत में तैयार किए गए तालाब में बीज रोपाई के लिए करीब 80 किलोग्राम बीजो की खपत होती है।
मखाने के बीजो की रोपाई हम सीधा तालाब में लगाकर या फिर तैयार किये गए पौध के रूप में भी कर सकते है। मखाने की पौध रोपाई के लिए पौधों को नवंबर और दिसंबर के महीने में ही तैयार करने के बाद उन्हें जनवरी और फ़रवरी में माह में लगाना सबसे योग्य समय है।
पौधो का विकास
मखाने के पौधे बीज रोपाई से एक से डेढ़ माह के बाद कांटेदार पत्तो के रूप में वृद्धि करते है और पत्तो से तालाब ढक जाता है। पत्तियों पर फूल निकलने के तीन से चार दिन बाद बीज बनते है और दो माह पश्चात् पके हुए बीज पत्तियों से अलग होकर पानी की सतह पर तैरने लगते है।
बीज एक से दो दिन तैरने के बाद पानी के नीचे चले जाते है और बाद में पौधों को हटाने के बाद बीज निकाल लिए जाते है। वैसे सभी बीजो को निकलने में काफी समय लग जाता है और कुछ बीज ख़राब भी हो जाते है। बीजो को पानी से निकालकर छिलके हटाकर साफ कर लिया जाता है।
इन बीजो से मखाने के लावे को निकाल लिया जाता है। तीन किलो बीजो से सिर्फ एक किलो लावा ही प्राप्त होता है। इसी लावे से मखाने को तैयार करने पर एक 100 KG मखाना गुड़ी से करीब 40 किलोग्राम मावा प्राप्त होता है। किंतु,बाजार में इसके उच्च दाम मिलते है, और हम मखाने की खेती कर अधिक लाभ हासील कर सकते है।
पौधो की देखभाल
पौधों की देखभाल के लिए तालाब को जाल से ढक देना चाहिए, ऐसा करने से पौधों को शांत वातावरण मिलता है, और उनका योग्य विकास होता है। साथ हीआवारा पशुओ के तालाब में प्रवेश पर भी विशेष ध्यान दे। तालाब में पानी की सही मात्रा भी बनाये रखे और समय समय पर पानी डालते रहे।
मखाना की खेती में लागत
लागत की बात करें तो एक हेक्टेयर में मखाना की खेती करने के लिए करीब 97,000 रुपये की लागत आती है। इस लागत पर किसानों को अधिकतम 72,750 रुपये की सब्सिडी मुहैया की जाती है। मखाने की खेती के लिए सब्सिडी पाने के लिए इन 8 जिलों के किसान बिहार सरकार के योजना के तहत आवेदन कर सकते हैं।
बीज का खर्च
मखाने की खेती के लिए बीज खरीदने में भी ज्यादा खर्च नहीं होता है, क्योंकि पिछली फसल के बचे हुए बीज से ही नए पौधे उग जाते हैं। मखाने की खेती में मुख्यत: मजदूरी के लिए सबसे अधिक पैसा खर्च करना होता है।
इस खेती में पानी के ऊपर उगे फसलों की छंटाई करनी पड़ती है। उस बाद की प्रक्रिया में फसल के दाने को पहले भूना जाता है और फिर उसे फोड़ कर बाहर निकाल लिया जाता है। उस बाद इस फसल को धूप में सुखाया जाता है। इस प्रकार मखाने की फसल पूरी तरह तैयार होती है।
इस काम में मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है। साथ ही एक या दो किसान मिलकर यह काम नहीं कर सकते है। इस लिए ही मखाने की खेती में मजदूरों का सहारा लेना जरूरी है जिसमें अधिक पैसा खर्च होता है। किंतु, बाजार में इसकी मांग के कारण किसान मखाना की पैदावार बेचकर कई गुना तक मुनाफा भी हासिल कर लेते हैं।
निष्कर्ष:
मखाना की खेती एक सफल और अधिक मुनाफे वाला Agriculture Business Ideas Hindi है | मखाना की खेती में अधिक मुनाफा होने के कारण हम इस को फ्यूचर बिज़नेस आइडियाज कह सकते हैं, कोरोना महामारी के बाद लोगो में अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है। अब लोग हेल्दी चीज़े खाना पसंद कर रहे हैं जिस से शरीर में कोई नुकसान ना हो |
ऐसा नहीं है कि मखाना की खेती हम सिर्फ तालाब में ही कर सकते हैं लेकिन तालाब के अलावा हम एक से डेढ़ फीट गहरे खेत में भी मखाने की खेती कर सकते है। मखाने की खेती से हमें साल में करीब 5 से 8 लाख रुपये तक का मुनाफा हो जाता है।
इस बिज़नेस की सबसे फायदा पहुंचाने वाली बात यह है कि मखाना निकालने के बाद इसके पत्ते और डंठल भी बेकार नहीं गिने जाते बल्कि स्थानीय बाजारों में मखाने के पत्ते और डंठल की भी भारी मांग रहती है। इसे बेचकर भी किसान अच्छी खासी आमदनी हासिल कर सकते हैं।
मखाने की खेती एक ऐसा बिज़नेस है जिससे किसान या बिज़नेस करने वाले लोग, मछली पालन से भी से भी अधिक कमाई हासिल कर रहे हैं। मखाने के कच्चे फल की मांग को देखते हुए किसानों को यहां वहां भटकना भी नहीं पड़ता बल्कि बाजार में यह बड़ी ही आसानी से बिक जाते है।
मखाने की खेती में योग्य रख रखाव भी बहुत ही जरुरी है क्योंकी अगर समय पर फल प्राप्त नहीं होते है, तो फलो के ख़राब होने की संभावना बढ़ जाती है और मखाना की खेती करने वाले किसान भाइयो को परेशानियों का सामना करना पड़ता है, लेकीन जब एक बार फसल तैयार हो जाए तो कम खर्च में अधिक मुनाफा भी कमाया जा सकता है।
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मखाना की खेती कहां होती है?
भारत में मखाना की सब से अधिक खेती बिहार राज्य में होती है। हमारे देश में तक़रीबन 15 हजार हेक्टेयर के खेत में मखाने की खेती की जाती है। बिहार राज्य में करीब 1 लाख 20 हज़ार टन मखाने के बीज का उत्पादन होता है, जिसमे से मखाने के लावे की मात्रा 40 हजार टन होती है। अधिक जानकारी के लिए ऊपर लिखे आर्टिकल को पढ़े
मखाने का पेड़ कैसा होता है
मखाने का पेड़ पानी के तालाब में उगाया जाता है। इस का पत्ता काफी चौड़ा होता है जो पानी की सतह पे रहता है और वही पर मखाना का फूल बनता है अधिक जानकारी के लिए ऊपर लिखे आर्टिकल को पढ़े
मखाने के फायदे क्या हैं
तनाव में कमी जोड़ो के दर्द में राहत पाचन में सुधार किडनी को मजबूत बनता है किडनी हेल्दी बनी रहती है. खाली पेट मखाने खाने से खून में शुगर का लेवल कंट्रोल में रहता है. डायबिटीज पेशेंट्स के लिए मखाना एक जरुरी मेवा है.
मखाना की खेती कब और कैसे करें?
मखाना की खेती गर्म और शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। मखाने की पौध रोपाई के लिए पौधों को नवंबर और दिसंबर के महीने में ही तैयार करने के बाद उन्हें जनवरी और फ़रवरी में माह में लगाना सबसे योग्य समय है। अधिक जानकारी के लिए ऊपर लिखे आर्टिकल को पढ़े
गांव में रोजगार के अवसर
मखाना की खेती गांव में रोजगार के अवसर के लिए एकदम उपयुक्त है। 80% तक मुनाफा देने वाली फसल से आज समय में किसान भाई अगर इस खेती को करते हैं तो मालामाल हो सकते हैं। इस खेती का बिजनेस आइडिया में मेहनत जरूर है लेकिन मखाना की खेती के फायदे बहुत हैं , इस का पत्ता, डंठल , और बीज सब अच्छे दाम में बाजार में आसानी से बिक जाता है
बिज़नेस आइडियाज इन बिहार
वैसे तो आप कोई भी बुसिनेस कर सकते हैं लेकिन भारत ही नहीं दुनियाँ भर के लोगो में अपने स्वस्थ्य को लेकर चिंता बनी हुई है और इसी लिए लोगो ने अपने खानपान में बदलाव किये हैं। अब हर कोई हेल्दी खाना चाहता है इसी लिए मखाना की खेती ने बहुत जोर पकड़ा है। बिहार में भारत का सब से ज्यादा मखाना पैदा होता है। सरकार भी बहुत मदद कर रही है, ट्रेनिंग दे रही है प्रोत्सान दे रही है और वहा के लोग इस मौके का पूरा फायदा उठा रहे हैं। अगर आप बिज़नेस आइडियाज इन बिहार देख रहे हैं तो मखाना की खेती बहुत बढ़िया विकल्प है।
अगर इस लेख में कुछ गलत जानकारी है तो कृपया comments में हमे बताए, हम उस को सुधारेंगे
लेखक:
लेखक, समाज सेवी एवं गौसेवा में समर्पित जीव प्रेमी