स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय
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विश्व पटल पर छा गए विवेकानंद
नरेंद्र 21वीं सदी का हो या 18 वीं सदी का इस नाम ने भारत को विश्व पटल पर सम्मान दिलाया है।आज हम यहाँ 18 वीं सदी के नरेंद्र दत्त यानि स्वामी विवेकानंद की बात कर रहे हैं। जिसने उस सदी में ही भारत के विश्व गुरू होने की घोषणा कर दी थी।
‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत’ अर्थात उठो , जागो और ध्येय की प्राप्ति तक मत रुको। ऐसी विचारधारा वाले स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म संसद में अपने भाषण से सभी को अभिभूत कर लिया था।
लेडीज एन्ड जेंटलमेन शब्दों के आदि हो चुके लोगों ने भाइयों और बहनों शब्दों को सुना और वे विवेकानंद के अनुयायी बन गए। भारत दर्शन और सनातन धर्म की ऐसी तस्वीर स्वामी जी ने धर्म सम्मेलन में प्रस्तुत की कि विश्व में भारत का डंका बजने लगा। ऐसे थे स्वामी विवेकानंद।
Swami Vivekananda अतिथि सत्कार के प्रेमी
12 जनवरी 1863 में कोलकाता में जन्मे स्वामी विवेकानंद का शुरू में नाम नरेंद्र दत्त था। पाश्चात्य सभ्यता के प्रेमी उनके पिता विश्वनाथ दत्त उन्हें भी इसी राह पर ले जाना चाहते थे। लेकिन उनकी मृत्यु हो जाने के कारण ऐसा न हो सका। किन्तु पिता के बाद नरेंद्र पर ही घर का भार पड़ गया।
उस समय नरेंद्र के घर की दशा अत्यंत खराब थी। सरल और सौम्य स्वभाव के कारण स्वयं भूखे रह कर भी वे अतिथियों का सत्कार किया करते थे। अतिथि सेवा के लिए नरेंद्र स्वयं भूखे प्यासे रह कर अतिथियों की सेवा करते थे।
ऐसे मिले थे रामकृष्ण परमहंस से
विवेकानंद को परमात्मा से मिलन की आस थी। इसलिए वे ब्रह्म समाज से जुड़े पर उनके मन को शांति नहीं मिली। अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए उन्हें एक गुरु की तलाश थी। रामकृष्ण परमहंस के बारे में उन्होंने सुना तो वे उनसे मिलने गए।
परमहंस से मिलने के बाद उनका जीवन बदल गया। 1881 में रामकृष्ण से उन्होंने दीक्षा लेकर संन्यास ले लिया। रामकृष्ण के कारण ही उन्हें आत्म साक्षात्कार हुआ।
विवेक को किया जाग्रत
स्वामी विवेकानंद जब नरेंद्र थे तभी से बहुत ही तार्किक और बुद्धिमान थे लेकिन रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें बुद्धि से परे जाने को कहा।समर्पण भाव में पहुँच कर विवेकानंद ने अपने विवेक को जाग्रत किया सत्य की खोज कर स्वयं को पहचाना। गुरु सेवा की।
गुरू सेवा के कारण ही उन्हें अध्यात्म का ज्ञान हुआ । गुरु की अनन्य भक्ति के कारण ही उन्होंने महान व्यक्तित्व को पाया।
विश्व भ्रमण कर Swami Vivekananda ने भारतीय दर्शन का किया प्रचार
25 वर्ष की अवस्था में ही नरेंद्र दत्त ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए थे । संन्यास लेने के साथ ही उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म परिषद में स्वामी विवेकानंद ने भारत का प्रतिनिधित्व किया।
यूरोप-अमेरिका में उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत ही हेय दृष्टि से देखा जाता था। वहां के लोगों का प्रयास था कि स्वामी विवेकानंद को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले। एक अमेरिकन प्रोफेसर की कोशिश से उन्हें अल्प समय मिला।
थोड़े से समय में ही उन्होंने स्वयं को सिद्ध कर भारत दर्शन का ऐसा चित्र खींचा कि लोग उनके कायल हो गए। तीन वर्ष तक वे अमेरिका रहे और वहां के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे। एक बड़ा अमेरिकन समुदाय उनका भक्त बन चुका था।
अमेरिका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएं खोलीं । बहुत सारे अमेरिकन विद्धान उनके शिष्य बने और भारत के गौरव को देश-देशांतरों में उज्ज्वल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया।
वेदों के ज्ञाता विवेकानंद
विवेकानंद ने वेदांत का ज्ञान अर्जित किया। दर्शन, बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग और गीता को मिलाकर उन्होंने अपना एक नया दर्शन बनाया। उनके दर्शन का मूल वेदांत और योग ही रहा। विवेकानंद मूर्तिभंजक थे। उनके अनुसार ‘ईश्वर’ निराकार है। ईश्वर एक है। उनका मानना था कि आत्मा को शरीर रहते ही ‘आत्मा के अमरत्व’ को जानना चाहिए ।
Swami Vivekananda युवाओं के प्रेरणास्रोत
विवेकानंद का कहना था कि जिस देश का युवा निर्बल और शक्तिहीन होगा, वह राष्ट्र कभी शक्ति संपन्न नहीं हो सकता। हिंदुत्व के समर्थक और भारतीयता से ओतप्रोत स्वामी विवेकानंद युवाओं को शक्तिशाली बने रहने का भी उपदेश देते थे।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन् 1984 ई. को ‘अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस’ घोषित किया। इसी वर्ष युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस 12 जनवरी को भारत सरकार ने राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।
39 वर्ष की आयु में ली महा समाधि
योग और वेदांत के ज्ञाता स्वामी विवेकानंद ने स्वयं के बारे में पूर्व में ही भविष्यवाणी कर दी थी कि वे 40 वे वर्ष में प्रवेश नहीं कर पाएंगे। 31 रोगों से ग्रसित विवेकानंद ने ध्यान में रहते हुए 39 वर्ष की आयु में ही महा समाधि ले ली थी।
वह 4 जुलाई सन् 1902 का दिन था Swami Vivekananda की मृत्यु हुई थी। उनकी बेलूर में गंगा के तट पर चंदन की चिता पर अंत्येष्टि की गयी थी। इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरू रामकृष्ण परमहंस का अंतिम संस्कार हुआ था।
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लेखक:
Chief Editor of www.successkeys.in Manisha, Upadhaya is a Highly experienced Journalist. In the year 2008, she started her innings in the field of journalism from the Hindustan newspaper. She did excellent work in many newspapers including Amar Ujala, The Sea Express. For the last 15 years, she is the district correspondent of Doordarshan U.P. Also, Manisha Ji has been giving her services in Akashvani as a casual announcer for 15 years. She made a different identity in society through his news.
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