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Motivational Kahani In Hindi: PhD करने वाली कर्नाटक की पहली ट्रांसजेंडर वुमन
Deepu Buddhe यह एक ऐसी शक्तिशाली प्रतिभा है जो PhD में एडमिशन लेने वाली कर्नाटक की पहली ट्रांसजेंडर बनी है। इनके लिए यहां तक का सफर सुहाना सफर नहीं था किंतु अपने इस सपने को परवान चढ़ाने के लिए वे समाज और परिवार दोनों से अपने हक के लिए लड़ाई लड़ी।
वैसे तो हम टेक्नोलॉजी से लेकर शिक्षा तक प्रगति कर चुके हैं। लेकिन आज भी हमारे समाज में एक ऐसा वर्ग मौजूद है जिनकी सोच नहीं बदली है।
आज भी हमारे देश में LGBTQ+ समुदाय को पूरी तरह अपनाने के नाम पर लोग अपनी नाक सिकुड़ते हैं। कोर्ट ने तो होमोसेक्शुएलिटी को कानूनी दर्जा दे ही दिया है लेकिन हमारे समाज में ट्रांसजेंडर, होमोसेक्शुअल्स को वह दर्जा नहीं दिया गया है जो उनका अधिकार है।
आज भी अगर हम अपने आसपास नजर करते हैं तो अपनी मर्जी व सच्चाई से जीने के लिए साथ ही पढ़ाई वह नौकरी के लिए ऐसे लोगों को हर रोज ही संघर्ष का सामना करना पड़ता है। सोशल मीडिया से लेकर हमारे आसपास हम कई ट्रांसजेंडर्स को लोगों की सहायता करते हुए देखते हैं।
किंतु, फिर भी अधिकतर लोग ट्रांसजेंडर को ताली पीटकर पैसे कमाने वाले भी समझते हैं। हकीकत में तो ट्रांसजेंडर समुदाय मौका मिलने पर हर क्षेत्र में झंडे गाड़ कर यह साबित कर चुके हैं कि टैलेंट के मामले में वह किसी से कम नहीं है।
कर्नाटक से पीएचडी में दाखिला लेने वाली पहली ट्रांसजेंडर
आज हम आपको कर्नाटक से PhD करने वाली पहली ट्रांसजेंडर से मिला रहे हैं।
Deepu Buddhe नामक यह ट्रांसजेंडर आज ऐसे लोगों के लिए एक मिसाल है जो समाज से डरते हुए अपने टेलेंट वह प्रतिभा को दबा देते हैं।
32 साल की दीपा बुद्धे एचजी इतिहास का हिस्सा बन चुकी हैं। The New Indian Express के एक लेख के मुताबिक, कर्नाटक से पीएचडी में दाखिला लेने वाली पहली ट्रांसजेंडर दीपा यूनिवर्सिटी ऑफ़ मैसूर से अपने ही समुदाय पर ही प्रोफ़ेसर जे सोमशेखकर के गाइडेंस में रिसर्च कर रही हैं।
दीपा बुद्धे के शोध का मुख्य विषय है, ‘’मैसूरू चमाराजानगर डिस्ट्रिक्ट्स ट्रांसजेंडर कम्युनिटीज़: अ क्रिटिकल स्टडी ऑन द लाइव्स ऐंड स्ट्रगल्स”। वैसे तो पहले भी कहीं ट्रांसजेंडर्स ने PhD की है लेकिन वे खुद को मेल या फीमेल बता कर ही एडमिशन लेते थे।
लेकिन दीपा पहली ही ऐसी ट्रांसजेंडर है जिन्होंने अपनी सच्चाई नहीं छुपाई और सफलता के रास्ते पर कदम रखा।
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संघर्षों से भरा है दीपा का यह सफर
दीपा का पीएचडी करने का सफर काफी संघर्ष से भरा रहा है। इतना ही नहीं अपने इस सपने को पूरा करने में भी दीपा को परिवार का भी सहकार नहीं मिला है। परिवार ने भी उन्हें दुत्कार दिया था यहां तक कि पिछले 12 सालों से दीपा अपने घर नहीं गई है।
इस दुनिया में आंखें खोलते ही कदम कदम पर ज़िन्दगी ने दीपा से कई इम्तहान लिए। दीपा को जन्म के बाद ही, मेल जेंडर दे दिया गया था। उनके पिता गुरूसिदय्या दिहाड़ी मज़दूर थे और मां महादेवम्मा 4 बेटियों और 1 ‘बेटे’ को पाल-पोसकर जैसे तैसे बड़ा कर रही थी। धीरे धीरे दीपा को अपने आप में कुछ बदलाव महसूस हुए और आखिर में सातवीं कक्षा में दीपा को अपनी असली पहचान का एहसास हो गया।
बातचीत में दीपा ने अपने बारे में बताते हुए कहा कि, “सभी पेरेंट्स की तरह ही मेरे माता-पिता भी मुझ पर जान न्योछावर करते थे। लेकिन जब उन्हें यह मालूम हुआ कि मैंने इस ट्रांसजेंडर हूं तो उन्होंने मुझे दुत्कार ही दिया। उस वक्त में PU में पढ़ाई कर रही थी और तब मैंने भी अपने परिवार का त्याग कर अपने समुदाय से जुड़ने का फैसला किया।“
बस यह वही वक्त था जब दीपा के लिए उनके घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए हो गए। दीपा के अनुसार पिछले 12 सालों से वह अपने घर नहीं गई है और न ही अपने परिवार के किसी सदस्य से मिली है।
दीपा को हमेशा से ही पढ़ाई लिखाई में दिलचस्पी रही थी और अपनी इसी दिलचस्पी के कारण वह हमेशा से आगे बढ़ना चाहती थी। दीपा ने अपनी स्कूली शिक्षा हेग्गावादीपुरा स्थित अपने गांव और हाई स्कूल की शिक्षा संतामाराहल्ली से पूरी की थी।
उस बाद गवर्मेंट पीयू कॉलेज से ग्रैजुएशन किया। पढ़ाई के साथ ही दीपा ने समता सोसाइटी के साथ समाज सेवा भी की थी। कुछ सालों के बाद ही वो सोसाइटी की प्रोजेक्ट मैनेजर भी बन गई। साल 2018 में दीपा को कर्नाटक स्टेट सेक्शुअल माइनॉरिटी फ़र्म का ट्रेज़रर भी बना दिया गया।
समाज के ताने व भद्दी टिप्पणियां सुनी
दीपा ने कुदेरू स्थित डिग्री कॉलेज में दाखिला तो ले लिया था लेकिन 2015 में उन्होंने जब अपनी असली पहचान सबको बताई तब उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। इतना ही नहीं दीपा को लोगों के ताने और भद्दी टिप्पणियां भी सुननी पड़ी थी।
इतना सबकुछ सहने के बावजूद दीपा ने हार नहीं मानी और 2018 में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ मैसूर से ही अंबेडकर स्टडीज़ में एमए भी कर लिया। दीपा ने अपने ही डिपार्टमेंट में सबसे ज़्यादा अंक भी हासिल किए।
दीपा बाबा साहब अंबेडकर से काफ़ी प्रभावित हैं। 3 साल में अपनी पीएचडी पूरी करने की कोशिश कर रही दीपा हम सभी के लिए एक जीती जागती प्रेरणा मूर्ति हैं।
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लेखक:
नई बिज़नेस आइडियाज, मोटिवेशनल कहानियां, एवं टेक्नोलॉजी से सम्बंधित लेख लिखना मेरा शौक है।